बाबा बंदा बैरागी

 


लक्ष्मणदेव जी के हाथों से छूटा तीर जब अचानक एक गर्भवती हीरण को लगा तो उस द्र्श्य ने लक्ष्मणदेव को विचलित कर दिया, तीव्र आन्तरिक वेदना के साथ उन्होंने प्रायश्चित करते सांसारिक जीवन को छोड़ साधना की राह पकड़ ली और अपना नाम माधोदास वैरागी रख दिया ! उधर क्रूर जालिम मुगलों के नीचता के कारण गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के चारों मासूम बच्चे शहादत को प्राप्त कर चुके थे ! एक दिन गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज माधोदास की कुटिया पहुंचे और उन्हें प्रेरणा

दी कि "माधोदास ! अब यह समय साधना और वैराग्य धारण करने का नहीं है लेकिन आतंकी और क्रूर मुगलों के अत्यचारों से देश धर्म को बचाना है, उठो वैराग्य को छोड़ शस्त्रों को हाथ में उठाओ और इन मानवता के शत्रुओं को समाप्त कर दो !" गुरू की आदेश से माधोदासजी का अन्त:करण जाग उठा और साधना का मार्ग छोड़ उन्होँने शस्त्रों को धारण किया, और सबसे पहले गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज की सन्तानों के बलिदान का बदला लिया । वे जीवन के अन्त काल तक उन क्रूर आतंकी आततायि मुगलों के साथ एक शेर योद्धा की भान्ति लड़े जो आगे चलकर शहीद वीर बन्दा बैरागी बहादुर के नाम से जग प्रसिध्द हुए ।

इतिहास साक्षी है कि इन क्रूर आतंकी और लुटेरे मुसलिम मुगलों ने, धर्मान्ध कट्टरपंथी काजियों ने देश धर्म के रक्षक महान सिख गुरुओं के साथ कैसे कैसे निर्दयता पूर्ण अत्याचार और अन्याय कीये ! देश के प्रत्येक जागृत राष्ट्र भक्त को अपनी सभ्यता सस्कृति के रक्षक वीर योद्धाओं और समस्त महान बलिदानी सिख गुरुओं के भुलाए जा रहे इतिहास को पढ़ना पढ़ाना और याद रखना चाहिए ।
आज हमारे आदर्श देश धर्म के रक्षक प्रात: स्मरणीय वीर बन्दा बहादुर जी की जन्म जयंती है, उनका जन्म दिनांक २७.१०.१६७० के दिन राजौरी जम्मू में हूआ था, उनके साहसी जीवन को स्मरण करते नतमस्तक होकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन करते हैं ।

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