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अखंड ज्वाला आज से 3 हजार साल से यू ही जल रही है

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  आज आप लोग tv न्यूज़ चैनलों पर दो देशों की युद्ध की खबर देखते होंगे अजरबेजान ओर आर्मेनिया की--परंतु कभी कोई न्यूज़ चैनल आपको ए नही बतायेगा की मुस्लिम देश अजरबेजान में ओर ईरान सीमा पर हम हिन्दुयों का एक माँ भबानी का शक्तिपीठ है - चलो आज में आपको इसकी असलियत दिखाती हूं । ए शक्तिपीठ और ए अखंड ज्वाला आज से 3 हजार साल से यू ही जल रही है ऐसा हम नही कह रहे हैं ऐसा विज्ञान कहता है और उस देश का विज्ञान और वैज्ञानिक कह रहे हैं जिसकी 90%आबादी मुस्लिम है यानी अजरबेजान ।। 1860 तक यहाँ हिन्दू ओर फ़ारसी इस मंदिर में पूजा किया करते थे और भारत से जो व्यापारी यूरोप और तुर्क ईरान में व्यापार करने जया करते थे बो यहाँ रुका करते थे । आज ए मंदिर खण्डर हैं पर इसकी ज्वाला आज जल रही है जिसने मिटाने ओर वुजाने नष्ट करने की कोशिश कई सौ सालों से की गई पर ज्वाला को कोई बुजा ना सका । मंदिर खंडरो के शिलालेखों पर आज भी संस्कृत में श्री गणेश भगवान शिव माता पार्वती ओर श्लोक लिखे हुये कोई भी जाकर देख सकता है।।1998 में यूनेस्को ने इसे विश्वधरोहर घोसित किया और 2007 में अजरबेजान सरकार ने इसे राषटीय धरोहर घोसित किया

पूरी कायनात जैसे साज़िशें कर रही थी और इतनी शांति से कि हमें पता न चले।

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  शाहजहाँ ने बताया था, हिंदू क्यों गुलाम हुआ ? समय न हो तो भी, एक बार तो अवश्य पढें । मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था । तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार, सेनापति, अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था । उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा व्यथा थी । तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । समय चक्र पलटा, दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सि

बाबा बंदा बैरागी

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  लक्ष्मणदेव जी के हाथों से छूटा तीर जब अचानक एक गर्भवती हीरण को लगा तो उस द्र्श्य ने लक्ष्मणदेव को विचलित कर दिया, तीव्र आन्तरिक वेदना के साथ उन्होंने प्रायश्चित करते सांसारिक जीवन को छोड़ साधना की राह पकड़ ली और अपना नाम माधोदास वैरागी रख दिया ! उधर क्रूर जालिम मुगलों के नीचता के कारण गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के चारों मासूम बच्चे शहादत को प्राप्त कर चुके थे ! एक दिन गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज माधोदास की कुटिया पहुंचे और उन्हें प्रेरणा दी कि "माधोदास ! अब यह समय साधना और वैराग्य धारण करने का नहीं है लेकिन आतंकी और क्रूर मुगलों के अत्यचारों से देश धर्म को बचाना है, उठो वैराग्य को छोड़ शस्त्रों को हाथ में उठाओ और इन मानवता के शत्रुओं को समाप्त कर दो !" गुरू की आदेश से माधोदासजी का अन्त:करण जाग उठा और साधना का मार्ग छोड़ उन्होँने शस्त्रों को धारण किया, और सबसे पहले गुरू गोविन्द सिंह जी महाराज की सन्तानों के बलिदान का बदला लिया । वे जीवन के अन्त काल तक उन क्रूर आतंकी आततायि मुगलों के साथ एक शेर योद्धा की भान्ति लड़े जो आगे चलकर शहीद वीर बन्दा बैरागी बहादुर के नाम से जग प्रसिध्द

एक और प्रताप

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यह गाथा महाराणा प्रताप की नहीं है! अफसोस की बात यह है कि लगभग हम सब महाराणा प्रताप के बारे में जानते हैं, पर इस देश की माटी पर और भी कई #प्रताप हुए हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं! विक्रमादित्य का नाम सबने सुना है, पर कितने विक्रमादित्य हुए, कब हुए, कहाँ हुए और उनकी क्या उपलब्धियां रहीं, ये जानना बस यूपीएससी वालों के जिम्मे रह गया है! खैर! यह गाथा है छत्रपति शिवाजी महाराज के एक और बांके वीर सेनानी, सरनौबत (थल सेना प्रमुख) सेनापति प्रतापराव गुजर की! यह गाथा है उस महावीर की, जो मात्र अपने छह सैनिकों के साथ मुगलों की 15000 की सेना पर टूट पड़ा और अपना बलिदान दे दिया, पर राजे की बात नहीं टाली! यह गाथा है मराठा साम्राज्य के इतिहास की सबसे साहसिक घटना की! आप सब कोंडाजी फ़र्ज़न्द के बारे में जान चुके हैं, जिन्होंने मात्र साठ सैनिकों की मदद से एक ही रात में, मात्र साढ़े तीन घण्टे में पन्हाला किला जीत लिया था और उसे स्वराज्य में शामिल कर उसपर पुनः भगवा पताका फहरा दी थी! बीजापुर के वजीर खवास खाँ को जब पन्हाला दुर्ग हाथ से निकलने का समाचार मिला तो उसने बहलोल खाँ के नेतृत्व में एक बड़ी सेना श