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जब मोहरे बिछानी शुरू की तब उस धूर्तता ओर कपट मे संलीप्त मुगल बादशाह ने ज्यादा रकम ऐंठने के लिए आडी नही लेकीन खडी मुद्रायें बिछाने को कहा !

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  टोडरमल जी की हवेली...... चित्र मे दिखाई देने वाली यह दिवान टोडरमल जी की हवेली है जिन्होंने 78,000 मोहरें बिछाकर गुरुगोविंद सिंह जी के साहबजादों और माता गुजरी देवी जी के संस्कार के लिए 4 गज जगह खरीदी थी.. मुगल के क्रूर राजा ने मां गुजरी और बच्चों के संस्कार के लिए जमीन देने से मना कर दिया था तब टोडरमल जी सामने आए उन्होंने मुगल क्रूर राजा को कहा राजा ने जमीन की कीमत मांगी थी सोने की मोहरों से जितनी जमीन नापी जा सके जब मोहरे बिछानी शुरू की तब उस धूर्तता ओर कपट मे संलीप्त मुगल बादशाह ने ज्यादा रकम ऐंठने के लिए आडी नही लेकीन खडी मुद्रायें बिछाने को कहा ! उस समय टोडरमल ने अंतिम संस्कार के लिए खडी सोने की मोहरे बिछाकर संस्कार हो सके इतनी जमीन खरीदकर संस्कार किया ! इतने क्रूर अत्याचार करके जो इस्लाम पनपा उसमें मानवता किस कोने में ढूंड रहे हो और आज स्थिति ये है कि खुद दिवान टोडरमल जी की हवेली को देखने वाला कोई नही........ सरहिंद पंजाब में यह हवेली है।

इतनी चालाक और गहरी साजिश की भारत पर अपना भव्य मूल्य और गौरव ही भूल जाए

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  इतनी चालाक और गहरी साजिश की भारत पर अपना भव्य मूल्य और गौरव ही भूल जाए! .ना रामायण, ना महाभारत, ना विक्रमादित्य, ना गुप्त वंश, ना मौर्य वंश, ना चौल, ना राणा प्रताप का वंश , ना वीर छत्रपतशिवाजी का वंश , ना ही पेशवा और न जाने कितने... ना गुरु गोविंद सिंह, ना गुरु नानक ना भगवान बिरसा ना सिद्धू कानू . ना बौद्ध ना ..ना जेन धर्म . ऐसे अनेक इतिहास को दबाना चाहते थे। ओर पढ़ाया तो सिर्फ भारत पर इस्लामिक आक्रान्ताओं का इतिहास और फिर सिर्फ बाबर के बाद हुमायूं, हुमायूं के बाद अकबर , अकबर के बाद शाहजहां , शाहजहां के बाद औरंगज़ेब..... आखिर कोंग्रेस चाहतीं क्या भी ? भारत की संस्कृति को दफनाना।

ये लड़ाई यूरोप के सभी स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे देश में इसे कोई जानता तक नहीं..

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  एक तरफ 12000 अफगान दूसरी तरफ 21 सिख ये लड़ाई यूरोप के सभी स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे देश में इसे कोई जानता तक नहीं... एक तरफ 12 हजार #अफगान_लुटेरे ...तो दूसरी तरफ #21_सिख ... अगर आप को इसके बारे नहीं पता तो आप अपने इतिहास से बेखबर है... आपने " #ग्रीक_सपार्टा " और " #परसियन " की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा...इनके ऊपर "300" जैसी फिल्म भी बनी है...पर अगर आप " #सारागढ़ी " के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा इससे महान लड़ाई #सिखलैड मेँ हुई थी... बात 1897 की है... नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानो ने हमला कर दिया...वे #गुलिस्तान और #लोखार्ट के किलो पर कब्जा करना चाहते थे...इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिघ ने बनवाया था... इन किलो के पास सारागढी मे एक सुरक्षा चौकी थी...जहाँ पर 36 वीँ सिख रेजिमेट के 21 जवान तैनात थे...ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे...36 वी सिख रेजिमेट मे केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे.... ईशर सिह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानो को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानो से जिँदा बचना नामुंकिन

सर्व विघ्नों का नाश करने वाली ‘महाविद्या तारा

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  सर्व विघ्नों का नाश करने वाली ‘महाविद्या तारा’, स्वयं भगवान शिव को अपना स्तन दुग्ध पान कराकर हलाहल की पीड़ा से मुक्त करने वाली। देवी महा-काली ने हयग्रीव नमक दैत्य के वध हेतु नीला वर्ण धारण किया तथा उनका वह उग्र स्वरूप उग्र तारा के नाम से विख्यात हुआ। ये देवी या शक्ति, प्रकाश बिंदु के रूप में आकाश के तारे के समन विद्यमान हैं, फलस्वरूप देवी तारा नाम से विख्यात हैं। शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्रदान करने वाली तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध ‘मुक्ति’ से हैं, फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र हो या अन्य किसी प्रकार के संकट मुक्ति हेतु भगवान शिव द्वारा, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष का पान करने पर, उनके शारीरिक पीड़ा (जलन) के निवारण हेतु, इन्हीं ‘देवी तारा’ ने माता के स्वरूप में शिव जी को अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। जिसके कारण भगवान शिव को समस्त प्रकार के शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिली, देवी, जगत-जननी माता के रूप में और घोर से घोर संकटों कि मुक्ति हेतु प्रसिद्ध हुई। देवी तारा के भैरव, हलाहल विष का पान करने वाले अक्ष

अखंड ज्वाला आज से 3 हजार साल से यू ही जल रही है

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  आज आप लोग tv न्यूज़ चैनलों पर दो देशों की युद्ध की खबर देखते होंगे अजरबेजान ओर आर्मेनिया की--परंतु कभी कोई न्यूज़ चैनल आपको ए नही बतायेगा की मुस्लिम देश अजरबेजान में ओर ईरान सीमा पर हम हिन्दुयों का एक माँ भबानी का शक्तिपीठ है - चलो आज में आपको इसकी असलियत दिखाती हूं । ए शक्तिपीठ और ए अखंड ज्वाला आज से 3 हजार साल से यू ही जल रही है ऐसा हम नही कह रहे हैं ऐसा विज्ञान कहता है और उस देश का विज्ञान और वैज्ञानिक कह रहे हैं जिसकी 90%आबादी मुस्लिम है यानी अजरबेजान ।। 1860 तक यहाँ हिन्दू ओर फ़ारसी इस मंदिर में पूजा किया करते थे और भारत से जो व्यापारी यूरोप और तुर्क ईरान में व्यापार करने जया करते थे बो यहाँ रुका करते थे । आज ए मंदिर खण्डर हैं पर इसकी ज्वाला आज जल रही है जिसने मिटाने ओर वुजाने नष्ट करने की कोशिश कई सौ सालों से की गई पर ज्वाला को कोई बुजा ना सका । मंदिर खंडरो के शिलालेखों पर आज भी संस्कृत में श्री गणेश भगवान शिव माता पार्वती ओर श्लोक लिखे हुये कोई भी जाकर देख सकता है।।1998 में यूनेस्को ने इसे विश्वधरोहर घोसित किया और 2007 में अजरबेजान सरकार ने इसे राषटीय धरोहर घोसित किया

पूरी कायनात जैसे साज़िशें कर रही थी और इतनी शांति से कि हमें पता न चले।

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  शाहजहाँ ने बताया था, हिंदू क्यों गुलाम हुआ ? समय न हो तो भी, एक बार तो अवश्य पढें । मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था । तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार, सेनापति, अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था । उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा व्यथा थी । तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । समय चक्र पलटा, दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सि